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।। रमा एकादशी ४ नवंबर २०१८ ।। |
रमा एकादशी एवं पारण समय (Rama Ekadshi Date and Paran timing)
वैष्णव के लिए एकादशी ब्रत ४ नवंबर दिन रविवार २०१८ को है।Rama ekadshi is on 4th of November, 2018 for Vaishnav
वैष्णव के लिए पारण समय ५ नवंबर दिन सोमवार को सुबह ६:३८ से सुबह ८:५१ तक है।
Paran Timing is on 5th of November , 2018 in Morning 6:38 AM to 8:51 AM
एकादशी तिथि ३ नवंबर २०१८ को सुबह ५:१० से ४ नवंबर सुबह ३ :१४ तक है।
Ekadshi Tithi start on 3rd of November, 2018 5:10 AM and End on 4th of November, 2018 3:14 AM
कुछ लोग रमा एकासही का ब्रत ३ नवंबर २०१८ को भी मनाएंगे। उनके लिए पारण समय ४ नवंबर सुबह ८:४७ से सुबह ८:५१ तक है।
Rama Ekadshi, for Non vaishnav, is on 3rd of November, 2018 and parana timing is on 4th of November in morning 8:47 AM to 8:51 AM
रमा एकादशी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के एकादशी तिथि को मनाई जाती है। रमा एकादशी भगवान श्री हरि को बहुत ही प्रिय है। इस दिन भगवान श्री विष्णु और माता लक्ष्मि की पूजा की जाती है। जो भी प्राणी इस दिन एकादसी का ब्रत करता है, श्री हरि उसकी सारी मनोरथों को पूरा करते है और अंत काल में मनुष्य को श्री बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। एकादशी ब्रत में दशमी और द्वादशी तिथि को शुद्ध शाकाहार भोजन करना चाहिए। इस दो दिन तामसिक भोजन नहीं करने चाहिए। दशमी तिथि को मनुष्य को एक समय भोजन करना चाहिए। सायंकाल में भोजन नहीं करना चाहिए।
पूजा बिधि :
एकादशी के दिन प्रातः स्नान अदि कर के भगवान विष्णु की पूजा एवं एकादशी ब्रत का संकल्प लिया जाता है फिर माता लक्ष्मी एवं भगवान विष्णु की बिधि बिधान से पूजा किया जाता है।
सर्वप्रथम श्री हरी हो पंचामृत से स्नान कराकर बस्त्र एवं आभूषण पहनाये। फिर माता लक्ष्मि एवं भगवान को पुष्प, इत्र , नैवेद्य अर्पित करे। फिर उन्हें धुप, दीपक और गंध दिखाएं। फिर श्री लक्ष्मीनारायण की आरती करे। एकादशी माता का भी आरती करें।
एकादशी ब्रत कथा :
धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवन श्री कृष्ण से पूछा कि हे प्रभु कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादसी होती है और इसकी क्या कथा है।
भगवान बोले हे धर्मराज, कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होती है उसे रमा एकादशी कहते है। पूर्व जनम में मुचकुन्द नाम के एक प्रशिद्ध रजा थे जो श्री हरि के परम भक्त थे। उनके यहाँ नदियों में श्रेष्ठ चंद्रभागा कन्या के रूप में उत्पन्न हुई। जब कन्या विवाह योग्य हुई तो राजा ने अपनी कन्या का विवाह चन्द्रसेन कुमार शोभन के साथ कर दिया। बहुत दिन बीत जाने पे चन्द्रशेन कुमार शोभन अपने पत्नी चंद्रभागा के साथ ससुराल ए हुए थे। द्वादशी के दिन राज्य में ढिढोरा पिटवाया गया की एकादशी के दिन कोई भी अन्न ग्रहण न करे और एकादशी का ब्रत करे।
यह घोषणा सुनकर चन्द्रसेन अपनी पत्नी से बोले कि हे प्रिये मुझे इस समय क्या करना चाहिए मुझे बताओ। चंद्रभागा बोली कि हे श्वामि मेरे पिता के घर में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता यहाँ तक की जानवर भी उसदिन उपवास रखते है। शोभन जो की सरीर से बहुत ही दुर्बल था और वह ब्रत करने में अश्मर्थता जताया। फिर चंद्रभागा के समझने बुझाने पर वह वह एकादशी ब्रैट करने के ढृढ़ संकल्प लिया।
शोभन को भूख और प्यास के मारे बहुत पीड़ा हो रही थी। जैसे जैसे सैम होती गई शोभन की भूख प्यास से ब्याकुलता बढ़ती गई हुए सूर्योदय होते होते शोभन के प्राण पखेरू उड़ गए। राजा मुचकुन्द ने अपने दामाद का उचित ढंग से दाह संस्कार किया। शोभन के मृत्यु के पश्चात चंद्रभागा अपने पिता के ही घर में रहने लगी।
इधर एकादशी ब्रत के प्रभाव से शोभन मंदराचल पर्वत पर बेस परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुआ। वह पे सोभन कुबेर की भाती शोभा पाने लगा। राजा मुचकुन्द के राज्य में एक सोम शर्मा नाम के ब्राह्मण रहते थे। वे तीर्थ यात्रा के लिए निकले और घूमते हुए मंदराचल पर्वत पर पहुंचे। वहा पे उनको शोभन दिखा दिया। ब्राह्मण शोभन के समीप गए तो शोभन उनको पहचानकर अपने आसन से उठ खड़ा हुआ और प्रणाम करके उनका आदर सत्कार किया।
ब्राह्मण देव ने राजा और उसकी पत्नी का कुसल मंगल सुनाया। फिर ब्राह्मण देव बोले कि ऐसा सुन्दर एवं रमणीय नगर तुम्हे कैसे मिला, मिझे विस्तारपूर्वक कहो। शोभन बोला कि हे ब्राह्मण देवता ये सब मुझे कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष के रमा एकादशी ब्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ है। फिर ब्राह्मण देव से निवेदन किया की आप जाकर सारा बृतान्त राजा और मेरी पत्नी से कहियेगा। ब्राह्मण देव तीर्थ भ्रमण से वापस आकर सोभन का सारा बृतान्त राजा और उनकी पुत्री चंद्रभागा को सुनाया और ब्राह्मण देव बोले की वो नगर अस्थिर है तुम उसे स्थिर बनाओ। ब्राह्मण देव की बात सुनकर चंद्रभागा बोली कि हे ब्राह्मण देव मुझे अपने पति की दर्शन ली लालसा है अतः आप मुझे उस स्थान पे ले चले जहा मेरे पति देव विराजमान है। मै अपने ब्रत के पुण्य से उनके नगर को स्थिर बनाउंगी।
चंद्रभागा की बात सुनकर ब्राह्मण देव उसे मंदराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम में गए। वह मुनि के तप एवं एकादशी ब्रत के प्रभाव से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वो दिव्यगती प्राप्त कर ली। उसके बाद वह अपने पति के समीप गई और दोनों एकदूसरे को देख कर बहुत प्रसन्न हुए। सोभन अपने पत्नी को बुला कर अपने बाम भाग में आसान पर बैठाया। फिर चन्दभागा अपने पति से बोली की हे श्वामि मै अपने पिता के घर रहते हुए ८ वर्ष की आयु से आज तक जितने भी एकादशी का ब्रत किये है उसके पुण्य प्रभाव से ये नगर कल्प के अंत तक स्थिर रहेगा तथा यह नगर मनवांछित समृद्धियो से भरा हुआ रहेगा। इसप्रकार चंद्रभागा अपने पति के साथ दिव्य वैभव से परिपूर्ण नगर में ख़ुशी पूर्वक रहती है।
भगवान श्री कृष्ण बोले कि हे राजश्रेष्ठ मैंने तुम्हे रमा एकादशी ब्रत का कथा सुनाया। यह चिंतामणि और कामधेनु के सामान सभी मनोवांछित फल देने वाली है और अंत कल में मनुष्य श्री बैकुंठ धाम में प्रतिष्ठित होता है।
कृष्णपक्ष की एकादशी और शुक्लपक्ष के एकादशी दोनों सामान फल देने वाली होती है। प्रत्येक मनुष्य को दोनों एकादशी का ब्रत निष्ठां एवं श्रद्धा पूर्वक करनी चाहिए।
।। एकवार प्रेम से बोलिये श्री एकादशी महारानी की जय ।।
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