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।। दामोदर लीला ।। |
एक दिन माता यशोदा जी ने घर की सभी दासियों को दूसरे कामों में लगा दिया और स्वयं अपने लाला को माखन खिलाने के लिए दही मथने लगीं। माता कृष्ण की लीलाओं का स्मरण करतीं और गाती भी थीं। नन्दबाबा के पास हजारों सेवक और सेविकायें थी, लेकिन लाला का सारा काम यशोदा मैया अपने हाथों से ही करती थीं।
यशोदा मैया ने बालों में कुछ फूल लगाए हुए थे। वो फूल दही मंथन के समय बालों से निकलकर चरणों में गिरने लग गये। फूलों ने सोचा यशोदा मईया श्री कृष्ण की इतनी प्रेमी भक्त हैं, इनके सिर पर रहने का अधिकार हमको नहीं है। इनके चरणों मे रहकर ही हमको अपना जीवन सफल करना होगा।
कन्हैया अपनी मैया के पास आये और दही की मथानी पकड़ ली, उन्हें दही मथने से रोक दिया और स्वयं माता की गोद में कूदकर चढ़ गए। वात्सल्यस्नेह की अधिकता के कारण मैया लाला को दूध पिलाने लगीं।
पद्मगन्धा गाय का दूध आग पर रखा हुआ था वो उबलने लग गया। दूध उफनता देखकर मैया ने लाला को अतृप्त ही छोड़कर जल्दी से दूध उतारने के लिये चली गयीं। इससे कन्हैया को क्रोध आ गया। कन्हैया ने एक पत्थर उठाया और पास रखी हुई मटकी पर दे मारा। मटकी फूट गयी और दूध-दही फ़ैल गया।
अब कन्हैया ने बनावटी आँसू आँखों में भर लिए, दूसरे कमरे में जाकर बासी माखन खाने लगे और बंदरों को भी खिलाने लगे रामावतार में बंदरो भगवान की बहुत सहायता की थी।
जब मैया आयीं उन्होंने देखा मटकी टूटी पड़ी है, माखन फैला हुआ है। मैया समझ गयी कि यह सब मेरे लाला की ही करतूत है। मैया छड़ी लेकर वहाँ पहुँची जहाँ कन्हैया ऊखल पर बैठकर बंदरों को माखन खिला रहे थे। कन्हैया ने देखा मैया छड़ी लेकर आ रही है तो वह भवन के पीछे के दरवाजे से भागे।
आज बड़ी विलक्षण लीला हो रही है। भगवान आगे-आगे और भक्त पीछे-पीछे भाग रहा है। बड़े-बड़े योगी तपस्या के द्वारा अपने मन को अत्यन्त सूक्ष्म व शुद्ध बनाकर भी जिनमें प्रवेश नहीं करा पाते, उन्हीं भगवान को पकड़ने के लिए माता यशोदाजी पीछे-पीछे दौड़ रहीं हैं, किन्तु श्रीकृष्ण हाथ नहीं आते।
जब कन्हैया ने देखा मैया थक गयी, तब वो खड़े हो गये और मैया ने पकड़ लिया। कन्हैया का हाथ पकड़कर वे उन्हें डराने-धमकाने लगीं। कन्हैया रोने और आँसू बहाने लग गये। यशोदा मैया ने देखा कि लाला बहुत डर गया है, मैया ने छड़ी फेंक दी। इसके बाद सोचा कि इसको एक बार रस्सी से बाँध देना चाहिये। मैया ने रस्सी मँगायी और कन्हैया को बाँधने लग गयीं।
कन्हैया ने फिर से लीला प्रारम्भ कर दी रस्सी दो अंगुल छोटी पड़ गयी। मैया ने दूसरी रस्सी जोड़ी वह भी दो अंगुल छोटी पड़ गयी इस प्रकार सारे गोकुल की रस्सी जोड़ दी, फिर भी कन्हैया को न बाँध सकी और रस्सी हरबार दो अगुंल छोटी पड़ जाती
भक्त भगवान को तभी बांध सकता है जब भगवान की कृपा हो और भक्त जब भगवान से निष्काम प्रेम करता हो।
भगवान श्रीकृष्ण ने देखा मैया बहुत थक गयी हैं; तब कृपा करके वे स्वयं ही माँ के बंधन में बंध गये। वैसे तो श्रीकृष्ण परम स्वतंत्र हैं। ब्रह्मा, इंद्र आदि के साथ ये सम्पूर्ण जगत इनके वश में है। फिर भी इस तरह बंधकर, उन्होंने संसार को यह बात बताई कि मैं प्रेमी भक्तों के वश में हूँ।
संस्कृत में डोरी को दाम कहते है और उदर कहते हैं पेट को। यशोदा मैया ने भगवान् श्री कृष्ण के पेट को रस्सी से बाँधा इसलिए भगवान् का नाम दामोदर पड़ा।
यमलार्जुन का उद्धार
मैया कन्हैया को ऊखल से बाँधकर अपने काम में लग गई। कन्हैया ने देखा मैया अपना काम कर रही है, तो मैं भी अपना काम कर लूँ।
यमलार्जुन का उद्धारनन्द भवन के बहार यमलार्जुन के दो वृक्ष खड़े हुए थे। एक का नाम नलकूबर और दुसरे का नाम मणिग्रीव जो नारद जी के शाप से वृक्ष हो गये थे, वे दोनों बहुत ही दुष्ट प्रवृति के थे। उनका उद्धार करना था। कन्हैया ऊखल को खीचतें हुए नन्दभवन के बाहर आ गये। वहाँ उन्होंने ऊखल को दोनों वृक्षों के बीच में फंसाया और जोर से खीचा, भयानक आवाज हुई और दोनों वृक्ष गिर पड़े। उनमे से दिव्य पुरुष प्रकट हो गये।
उन्होंने प्रभु से वरदान माँगा कि हे प्रभु! आज के बाद हमारी वाणी से अगर कुछ निकले तो आपका नाम निकले या आपकी कथा निकले। कानों से हम कुछ सुने तो आपका गुणगान, आपका कीर्तन, आपकी कथा ये दूसरा वरदान है। हाथों से अगर कोई काम करे तो आपकी सेवा, मंदिर की सेवा, संत की सेवा, ठाकुर सेवा हो । ये है हाथों का उपयोग। मन हमेशा आपका चिंतन करे ये वरदान माँगा। हमारा मस्तक सारे लोगो को प्रणाम करने के लिये झुकता रहे। क्योंकि सारे लोगों में आप विराजमान हैं। हमारी दृष्टि सदा आपके दर्शन करे या भगवद्भक्त के दर्शन करे ऐसा हमे वरदान दीजिए। भगवान ने उनको वरदान दिया, और वो भगवान के धाम को चले गये।
श्रीमद्भागवत-महापुराण।
Jai shree radhey 🙏
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