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।। श्रीगोपेश्वर महादेव जी का दिव्य गोपी रूप का दर्शन ।। |
श्रीगोपेश्वर महादेव जी का प्राचीन मन्दिर वृन्दावन में स्थित है। कहा जाता है कि भोले बाब भगवान की महारास (शरद पूर्णिमा) देखने की लिए गोपी का रूप धारण कर वृन्दावन आये थे। उसी स्मृति में यह शिव मन्दिर बना है। भगवान शंकर का वृंदावन में विचित्र रूप में दर्शन होता है। संध्या के समय भगवान शंकर का नित्य दिव्य गोपी रूप में श्रृंगार किया जाता है।
पढ़े एक दिन वो भोले भंडारी बन के बृज की नारी वृन्दावन में आगये है।
एक बार शरद पूर्णिमा की शरत-उज्ज्वल चाँदनी में वंशीवट यमुना के किनारे प्रभु श्याम सुंदर की मधुर वंशी बज उठी। श्रीकृष्ण ने छ: मास की एक रात्रि करके मन्मथ का मानमर्दन करने के लिए महारास किया था। कैलाशपति भगवान शंकर को महारास इच्छा हुई और बाबा वृंदावन की ओर चल पड़े। माता पार्वती जी भी उनको समझाकर हार गयीं, किंतु त्रिपुरारि नहींमाने और वृंदावन के वंशीवट पर आ गये। वंशीवट जहाँ महारास हो रहा था, वहाँ गोपियाँ द्वार पर खड़ी हुई थीं। पार्वती जी तो महारास में अंदर प्रवेश कर गयीं, किंतु द्वारपालिकाओं ने श्रीमहादेवजी को अंदर जाने से रोक दिया और बोली कि हे प्रभु श्यामसुंदर के अतिरिक्त अन्य कोई पुरुष इस एकांत महारास में प्रवेश नहीं कर सकता।
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श्री शिवजी बोले, "देवियों! हमें भी श्रीराधाश्याम सुन्दर के दर्शनों की लालसा है, अत: आप ही लोग कोई उपाय बतलाइये, जिससे कि हम महाराज के दर्शन पा सकें?" ललिता नामक सखी बोली, यदि आप महारास देखना चाहते हैं तो गोपी बन जाइए। मानसरोवर में स्नान कर गोपी का रूप धारण करके महारास में प्रवेश हुआ जा सकता है। फिर भगवान शिव अर्धनारीश्वर से पूरे नारी-रूप बन गये। श्रीयमुना जी ने उनका विधवत श्रृंगार कर दिया, तो बाबा भोलेनाथ गोपी रूप हो गये। प्रसन्न मन से वे गोपी-वेष में महारास में प्रवेश कर गये।
श्री शिवजी मोहिनी-वेष में मोहन की रासस्थली में गोपियों के मण्डल में मिलकर अतृप्त नेत्रों से विश्वमोहन की रूप-माधुरी का पान करने लगे। नटवर-वेषधारी, श्रीरासविहारी, रासेश्वरी, रसमयी श्रीराधाजी एवं गोपियों को नृत्य एवं रास करते हुए देख नटराज भोलेनाथ भी स्वयं ता-ता थैया कर नाच उठे। श्यामसुन्दर ने ऐसी मोहिनी वंशी बजायी कि भोलेनाथ सारि सुध-बुध खो दिये। श्यामसुन्दर से क्या कुछ छिपा है। मुस्कुरा उठे, पहचान लिया भोलेनाथ को। उन्होंने रासेश्वरी श्रीराधा व गोपियों को छोड़कर ब्रज-वनिताओं और लताओं के बीच में गोपी रूप धारी गौरीनाथ का हाथ पकड़ लिया और मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए बड़े ही आदर-सत्कार से बोले, "आइये स्वागत है, महाराज गोपेश्वर।
श्रीराधा आदि श्रीगोपीश्वर महादेव के मोहिनी गोपी के रूप को देखकर आश्चर्य में पड़ गयीं। तब श्रीकृष्ण ने कहा, "राधे, यह कोई गोपी नहीं है, ये तो साक्षात् भगवान शंकर हैं। हमारे महारास के दर्शन के लिए इन्होंने गोपी का रूप धारण किया है। तब श्रीराधा-कृष्ण ने हँसते हुए शिव जी से पूछा, "भगवन! आपने यह गोपी वेष क्यों बनाया? भगवान शंकर बोले, "प्रभो! आपकी यह दिव्य रसमयी प्रेमलीला-महारास देखने के लिए गोपी-रूप धारण किया है। इस पर प्रसन्न होकर श्रीराधाजी ने श्रीमहादेव जी से वर माँगने को कहा तो श्रीशिव जी ने यह वर माँगा "हम चाहते हैं कि यहाँ आप दोनों के चरण-कमलों में सदा ही हमारा वास हो। आप दोनों के चरण-कमलों के बिना हम कहीं अन्यत्र वास करना नहीं चाहते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने `तथास्तु' कहकर कालिन्दी के निकट निकुंज के पास, वंशीवट के सम्मुख भगवान महादेवजी को `श्रीगोपेश्वर महादेव' के नाम से स्थापित कर विराजमान कर दिया। श्रीराधा-कृष्ण और गोपी-गोपियों ने उनकी पूजा की और कहा कि ब्रज-वृंदावन की यात्रा तभी पूर्ण होगी, जब व्यक्ति आपके दर्शन कर लेगा। आपके दर्शन किये बिना यात्रा अधूरी रहेगी। भगवान शंकर वृंदावन में आज भी `गोपेश्वर महादेव' के रूप में विराजमान हैं और भक्तों को अपने दिव्य गोपी-वेष में दर्शन दे रहे हैं। गर्भगृह के बाहर पार्वतीजी, श्रीगणेश, श्रीनन्दी विराजमान हैं। आज भी संध्या के समय भगवान का गोपीवेश में दिव्य श्रृंगार होता है।
श्रृंगार दर्शन
।। ॐ नमः शिवाय ।।
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