मानसपूजा क्या है ? और कैसे की जाती है ? मानसपूजा की विधि क्या है ?

मानसपूजा -

जाने क्या है मानसपूजा -

शास्त्रोंमें पूजा को हजारगुना अधिक महत्तवपूर्ण बनाने के लिए एक उपाय बतलाया गया है। उस उपाय को मानसपूजा कहते है। जिसे पूजा से पहले कर के फिर बाह्य बस्तुओंसे पूजन करें। 

पहले पुष्प - प्रकरण में शास्त्रका एक वचन कहा गया है कि मनःकल्पित यदि एक फूल भी भगवान को चढ़ा दिया जय तो वह करोड़ो बाहरी फूल चढानेके बराबर होता है। इसी प्रकार मानस चन्दन, धूप, दीप, नैवेद्य इत्याद भगवान को करोड़गुना अधिक संतोष दे सकेंगे। अतः मानसपूजा बहुत अपेक्षित है। 

वस्तुतः भगवान को किसी वस्तुकी आवश्यकता नहीं है वे तो भाव के भूखे है। संसारमें ऐसे दिव्य पदार्थ उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे भगवानकी  पूजा की जा सके। इसलिए पुराणों में मानसपूजाका विशेष महत्तव माना गया है। मानसपूजा में भक्त अपने भगवान को मुक्तामड़ियोंसे मण्डितकर स्वर्णसिंघासनपर विराजमान कराता है। स्वर्गलोककी मन्दाकिनी गङ्गाके जलसे स्नान कराता है, कामधेनु गौके दुग्धसे पञ्चामृतका निर्माण करता है। वस्त्राभूषण भी दिव्य अलौकिक होते हैं। पृथवीरूपी गंध का अनुलेपन करता है। अपने आराध्य के लिए कुबेरकी पुष्पवाटिका से स्वर्णकमलपुष्पोंका चयन करता है। भावनासे वायुरूपी धूप, अग्निरूपी दीपक तथा अमृतरूपी नैवेद्य भगवान को अर्पण करता है। इसके साथ ही त्रिलोककी सम्पूर्ण वस्तु  सच्चिदानंदघन परमात्मप्रभुके चरणों में भावनासे अर्पण करता है। यही मानस पूजा का स्वरुप है। 

मानस पूजा की विधि क्या है ?


कुछ संक्षिप्त विधि पुराणों में वर्णित है जो निचे दि गई है -

१. ॐ लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि।  
अर्थात : हे प्रभु मैं पृथवीरूप गन्ध (चन्दन) आपको अर्पित करता हूँ। 

२. ॐ हं आकाशात्मकं पुष्पं परिकल्पयामि। 
अर्थात : हे प्रभो मै आकाशरूप पुष्प आपको अर्पित करता हूँ। 

३. ॐ यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि। 
अर्थात : हे प्रभो मै वायुदेवके रूपमें धूप आपको अर्पित करता हूँ। 

४. ॐ रं वह्नयान्तकं दीपं दर्शयामि। 
अर्थात : हे प्रभो मै अग्निदेवके रूपमें दीपक अर्पित करता हूँ। 

५. ॐ वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि। 
अर्थात :  प्रभो मैं अमृतके सामान नैवेद्य आपको निवेदन करता हूँ। 

६. ॐ सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि। 
अर्थात : हे प्रभो मैं सर्वात्माके रूपमें संसार की सभी उपचारोंको आपके चरणोंमें समर्पित करता हूँ। 

ऊपर लिखे हुए मन्त्रोंसे भावनापूर्वक भगवान की मानसपूजा की जा सकती है। 

। प्रेम से बोलिये श्री सीता राम जी महाराज की जय ।

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