Don't be beggar (भिखारी न बनें)
किसी दूर राज्य में एक राजा शासन करता था। राजा बड़ा ही परोपकारी स्वभाव का था, प्रजा का तो भला चाहता ही था। इसके साथ ही पड़ोसी राज्यों से भी उसके बड़े अच्छे सम्बन्ध थे। राजा किसी भी इंसान को दुःखी देखता तो उसका ह्रदय द्रवित हो जाता और वो अपनी पूरी श्रद्धा से जनता का भला करने की सोचता।
एक दिन राजा का जन्मदिन था। उस दिन राजा सुबह सवेरे उठा तो बड़ा खुश था। राजा अपने सैनिकों के साथ वन में कुछ दूर घूमने निकल पड़ा। आज राजा ने खुद से वादा किया कि मैं आज किसी एक व्यक्ति को खुश और संतुष्ट जरूर करूँगा। यही सोचकर राजा सड़क से गुजर ही रहा था कि उसे एक भिखारी दिखाई दिया। राजा को भिखारी की दशा देखकर बड़ी दया आई। उसने भिखारी को अपने पास बुलाया और उसे एक सोने का सिक्का दिया।
भिखारी सिक्का लेके बड़ा खुश हुआ, अभी आगे चला ही था कि वो सिक्का भिखारी के हाथ से छिटक कर नाली में गिर गया। भिखारी ने तुरंत नाली में हाथ डाला और सिक्का ढूंढने लगा। राजा को बड़ी दया आई कि ये बेचारा कितना गरीब है, राजा ने भिखारी को बुलाकर एक सोने का सिक्का और दे दिया। अब तो भिखारी की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने सिक्का लिया और जाकर फिर से नाली में हाथ डाल के खोया सिक्का ढूंढने लगा। राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ, उसने फिर भिखारी को बुलाया और उसे एक चांदी का सिक्का और दिया क्यूंकि राजा ने खुद से वादा किया था कि एक इंसान को खुश और संतुष्ट जरूर करेगा।
लेकिन ये क्या ? चांदी का सिक्का लेकर भी उस भिखारी ने फिर से नाली में हाथ डाल दिया और खोया सिक्का ढूंढने लगा। राजा को बहुत बुरा लगा उसने फिर भिखारी को बुलाया और उसे एक और सोने का सिक्का दिया। राजा ने कहा – अब तो संतुष्ट हो जाओ…
भिखारी बोला – महाराज, मैं खुश और संतुष्ट तभी हो सकूँगा जब मुझे वो नाली में गिरा सोने का सिक्का मिल जायेगा।
What should we do? (हमें क्या करना चाहिए) ?
दोस्तों हम लोग भी उस भिखारी की ही तरह हैं और भगवान हमारे राजा हैं। हम मनुष्यों का ये स्वभाव है कि भगवान चाहे हमें कुछ भी देदें परन्तु हम संतुष्ट हो ही नहीं सकते। पैसा चाहिए, पैसा मिले तो अब कार चाहिए, कार मिले तो और हवाई जहाज चाहिए और यही क्रम चलता रहता है परन्तु हमें संतुष्टि कभी नहीं मिलती।
जिंदगी भर हमलोग भी उसी नाली वाले भिखारी की तरह सिक्का ढूढते हैं। भगवान ने हमें ये अनमोल शरीर दिया है, चाहे कितने भी अमीर हो जाएं, चाहे कितना भी धन कमा लें लेकिन संतुष्ट नहीं हो सकते। जब तक हम अपने मन को काबू में नहीं करते तब तक हमारा मन भटकता रहेगा और कभी संतुष्टि नहीं मिल सकती है।
परमात्मा द्वारा दिए हुए इस शरीर का इस्तमाल हम परोपकार में लगाएं। भगवान की भक्ति में लगायें, हमें भगवन्नाम जप में उस नाली वाले भिखारी की तरह होना चाहिए की कितना भी नाम जप ले संतुष्टि न मिले। तभी हमलोगों का जीवन सार्थक होगा।
जय जय श्री सीता राम जी महाराज की जय
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