Chhath Pooja - जानिए, क्यों मनाया जाता है छठ पर्व, भगवान राम और माता सीता ने की थी सूर्यदेव की आराधना

Chhath Puja
छठ पूजा 

छठ पूजा

छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के षष्टी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन लोग डूबते हुए सूर्य की पूजा एवं अर्घ देते है तथा अगले दिन यानि सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य की पूजा अर्चना होती है। इस पर्व को स्त्री या पुरुष अथवा दोनों कर सकते हैं। छठ पूजा देखा जाय तो ४ दिन का उत्सव होता है। छठ पूजा करने वाला ब्यक्ति कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के चतुर्थी तिथि को ब्रत सुरु करता है एवं ब्रत का समापन सप्तमी तिथि को सुबह में सूर्योदय के बाद होती है। ब्रत के दौरान अन्न एवं जल ग्रहण नहीं किया जाता है। यह पर्व मुख्यतः बिहार, पूर्वी उत्तरप्रदेश, झारखण्ड, नेपाल इत्यादि में मनाया जाता है। आजकल छठ पूजा की लोकप्रियता देश के कोने कोने में फैली हुई है। 

छठ पर्व बांस निर्मित सूप (सुपली), टोकरी, मिट्टी के बरतनों (इस बर्तन को स्थानीय भाषा में कोसी बोलते है जिसके किनारे पे मिटटी के दिए लगे होते है जिसमे दीपक जलाये जाते है ), गन्ने के रस, गु़ड़, चावल और गेहूं से निर्मित प्रसाद, फल (नारियल, सेब, केला, संतरा, सिंघाड़ा, मूली, सुथनी (एक प्रकार का जड़), शलजम, इत्यादि मुख्य फल प्रयोग लिए जाते है ), और सुमधुर लोकगीतों से युक्त होकर लोक जीवन की भरपूर मिठास का प्रसार करता है। गन्ने के पेड़ से मंडप बनाया जाता है जिसमे ५ या ९ गन्ने प्रयोग किये जाते है। 

यह पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जानेवाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। यह पर्व मुख्यतः नदी, तालाब, कुआँ के किनारे मनाया जाता है। 

छठ पूजा के बारे में प्रचलित कहानियां 

एक पौराणिक लोककथा के अनुसार लंका विजय पाने के बाद राम राज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान श्रीराम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया और ब्रत का समापन किया था।

कुछ मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।

 कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।

एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।

एकबार प्रेम से बोलिये छठी मैया की जय। छठ मैया आप की  सारी मनोरथ सिद्ध करें। 

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