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।। निधिवन वृन्दावन ।। |
निधिवन वृंदावन (Nidhivan Vrindavan)
समय सारिणी 6:00 AM से 12:00 PM तक एवं 4:00 PM से 8:00 PM तक।
Timing: 6:00 AM to 12:00 PM and 4:00 PM to 8:00 PM
निधिवन, श्री बांके बिहारी जी का रासस्थली है। यहाँ पर श्री ठाकुर जी, श्री राधा रानी एवं गोपियों के साथ नित्य रास रचते है। निधिवन श्री बाके बिहारी जी का प्राकट्य स्थल भी है। श्री हरिदास जी नित्य श्री युगल सरकार का दर्शन किया करते थे। कहा जाता है निधिवन के सारी लताये गोपियाँ है जो एक दूसरे कि बाहों में बाहें डाले खड़ी है जब रात में निधिवन में राधा रानी जी, बिहारी जी के साथ रास लीला करती है तो वहाँ की लताये गोपियाँ बन जाती है, और फिर रास लीला आरंभ होती है। इस रास लीला को कोई नहीं देख सकता, दिन भर में हजारों बंदर, पक्षी, जीव जंतु निधिवन में रहते है पर जैसे ही शाम होती है, सारे जीव जंतु बंदर इत्याद अपने आप निधिवन से बाहर चले जाते है और एक परिंदा भी फिर वहाँ पर नहीं रुकता यहाँ तक कि जमीन के अंदर के जीव चीटी आदि भी जमीन के अंदर चले जाते है। रास लीला को कोई नहीं देख सकता क्योकि रास लीला इस लौकिक जगत की लीला नहीं है रास तो अलौकिक जगत की "परम दिव्य लीला" है कोई साधारण व्यक्ति या जीव अपनी आँखों से इसे नहीं देख सकता. बिना ठाकुर जी के इच्छा के उन्हें न तो कोई देख सकता है और नहीं उनके परम दिव्य स्वरुप को जान सकता है।
जो बड़े बड़े संत है उन्हें निधिवन से राधारानी जी और गोपियों के नुपुर की ध्वनि सुनी है.
जब रास करते करते राधा रानी जी थक जाती है तो बिहारी जी उनके चरण दबाते है. और रात्रि में शयन करते है आज भी निधिवन में शयन कक्ष है जहाँ पुजारी जी जल का पात्र, पान,फुल और प्रसाद रखते है, और जब सुबह पट खोलते है तो जल पीला मिलता है पान चबाया हुआ मिलता है और फूल बिखरे हुए मिलते है.
जो बड़े बड़े संत है उन्हें निधिवन से राधारानी जी और गोपियों के नुपुर की ध्वनि सुनी है.
जब रास करते करते राधा रानी जी थक जाती है तो बिहारी जी उनके चरण दबाते है. और रात्रि में शयन करते है आज भी निधिवन में शयन कक्ष है जहाँ पुजारी जी जल का पात्र, पान,फुल और प्रसाद रखते है, और जब सुबह पट खोलते है तो जल पीला मिलता है पान चबाया हुआ मिलता है और फूल बिखरे हुए मिलते है.
निधिवन से सम्बंधित एक प्रचलित कहानी
एक बार कलकत्ता का एक भक्त अपने गुरु की सुनाई हुई भागवत कथा से इतना मोहित हुआ कि वह हर समय वृन्दावन आने की सोचने लगा। उसके गुरु उसे निधिवन के बारे में बताया करते थे और कहते थे कि आज भी भगवान यहाँ रात्रि को रास रचाने आते है। उस भक्त को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था और एक बार उसने निश्चय किया कि श्री वृन्दावन धाम जाऊंगा। श्री राधा रानी की कृपा हुई और भक्त श्री वृन्दावन धाम में आ गये। वृन्दावन वे जी भर कर श्री बिहारी जी एवं श्री राधा रानी का दर्शन किया लेकिन अब भी उन्हें इस बात का यकीन नहीं था कि निधिवन में रात्रि को भगवान रास रचाते है वे सोचे कि एक दिन निधिवन रुक कर देखता हू इसलिए वो वही पर रूक गये और देर तक बैठे रहे और जब शाम होने को आई तब एक पेड़ की लता की आड़ में छिप गये।जब शाम के वक़्त वहा के पुजारी निधिवन को खाली करवाने लगे तो उनकी नज़र उस भक्त पर पड गयी और उसे वहा से जाने को कहा तब तो वो भक्त वहा से चले गये लेकिन अगले दिन फिर से वहा जाकर छिप गये और फिर से शाम होते ही पुजारियों द्वारा निकाले गये और आखिर में वे निधिवन में एक ऐसा कोना खोज निकाले जहा उन्हे कोई न ढूंढ़ सकता था और वो आँखे मूंदे सारी रात वही निधिवन में बैठे रहे और अगले दिन जब सेविकाए निधिवन में साफ़ सफाई करने आई तो पाया कि एक व्यक्ति बेसुध पड़ा हुआ है और उसके मुह से झाग निकल रहा है
तब उन सेविकाओ ने सभी को बताया तो लोगो कि भीड़ वहा पर जमा हो गयी सभी ने उस व्यक्ति से बोलने की कोशिश की लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा था लोगो ने उसे खाने के लिए मिठाई आदि दी लेकिन उसने नहीं ली और ऐसे ही वो ३ दिन तक बिना कुछ खाएपीये ऐसे ही बेसुध पड़ा रहा और ५ दिन बाद उसके गुरु जो कि गोवर्धन में रहते थे बताया गया तब उसके गुरूजी वहा पहुचे और उसे गोवर्धन अपने आश्रम में ले आये आश्रम में भी वो ऐसे ही रहा और एक दिन सुबह सुबह उस व्यक्ति ने अपने गुरूजी से लिखने के लिए कलम और कागज़ माँगा गुरूजी ने ऐसा ही किया और उसे वो कलम और कागज़ देकर मानसी गंगा में स्नान करने चले गए जब गुरूजी स्नान करके आश्रममें आये पाया कि उस भक्त ने दीवार के सहारे लग कर अपना शरीर त्याग दिया थाऔर उस कागज़ पर कुछ लिखा हुआ था उस पर लिखा था-
"गुरूजी मैंने यह बात किसी को भी नहीं बताई है,पहले सिर्फ आपको ही बताना चाहता हू ,आप कहते थे न कि निधिवन में आज भी भगवान रास रचाने आते है और मैं आपकी कही बात पर यकीन नहीं करता था, लेकिन जब मैं निधिवन में रूका तब मैंने साक्षात बांके बिहारी का राधा रानी के साथ गोपियों के साथ रास रचाते हुए दर्शन किया और अब मेरी जीने की कोईभी इच्छा नहीं है ,इस जीवन का जो लक्ष्य था वो लक्ष्य मैंने प्राप्त कर लिया है और अब मैं जीकर करूँगा भी क्या? श्याम सुन्दर की सुन्दरता के आगे ये दुनिया वालो की सुन्दरता कुछ भी नहीं है, इसलिए आपके श्री चरणों में मेरा अंतिम प्रणाम स्वीकार कीजिये"
वो पत्र जो उस भक्त ने अपने गुरु के लिए लिखा था आज भी मथुरा के सरकारी संघ्रालय में रखा हुआ है और बंगाली भाषा में लिखा हुआ है
ऐसे बहुत सी कहानियां निधिवन के बारे में प्रचलित है जिन्हे संत लोग बहुत प्रकार से कथा को कहते है।
श्रीरामचरितमानस में श्री गोस्वामी तुलसीदास जी लिखते है कि -
हरी अनंत हरी कथा अनंता। कहहि सुनहि बहुबिधि सब सांता।।
अर्थात श्री हरि अनंत है और उनकी कथाएं अनंत है। संत लोग इसे बहुत प्रकार से कहते और सुनते है।
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